व्यवहारकुशल बनें

सफलता एवं मानवीय व्यवहार का गहरा रिश्ता है। व्यवहार कुशलता आपको आपकी लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बन सकती है। व्यवहार कुशलता में व्यक्ति को विनम्र बनाना चाहिये। आप चाहे कोई व्यापारी हैं या नौकरी करते हैं, प्रत्येक स्थान पर आपकी व्यवहार कुशलता आपको उन्नति दिलाएगी। एक व्यापारी होने पर स्वयं से संबंध रखने वाले ग्राहकों के प्रति, व्यापार में कार्यरत व्यक्तियों के प्रति, वितरकों के प्रति विनम्रता दिखाए। इस विनम्रता के बल पर आप उन सबका विश्वास एवं भरोसा जीत सकते हैं। यही विश्वास और भरोसा आपको सफलता अवश्य ही दिलाएगा। 


आप सभी से मधुरता के साथ बोले। मधुर संबंध बनाए फिर देखिए किसी प्रकार आप के जीवन में परिवर्तन होना आरंभ हो जाएगा। वाणी ही हमें किसी का दोस्त और मित्र बनाती है। कोयल की मीठी बोली सबको प्यारी लगती है। सब उसे पसंद करते है, जबकि कौए की कठोर तथा कर्कश आवाज के कारण उसे दुत्कारा जाता है। मधुर वाणी की विशेषता बताते हुए कबीर दास जी लिखते हैंµ
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे, आप हु शीतल होय।
अर्थात हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे हम अपने क्रोध पर नियंत्रण रख सकें। इस प्रकार का व्यवहार आपको शांत करने के अतिरिक्त आपके समक्ष खड़े व्यक्ति को भी शांत कर सकता है। इस दृष्टि से आपकी वाणी अर्थात आपकी मधुरता आपके व्यवहार का एक अनिवार्य अंग है। मधुर-भाषी होने से व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। अंग्रेजी में एक कहावत है ज्ीपदा इमवितम ैचमां अर्थात पहले तोलो फिर बोलो। अपने समक्ष उपस्थित व्यक्ति से ऐसी बातें कदापि न बोलें जो उसके आत्म सम्मान को छलनी कर दें। इस प्रकार की बातें आपको उस व्यक्ति से दूर कर देंगीं। एक कहावत भी काफी प्रचलित है किµप्यार से बोलो इज्जत मुफ्त मिलेगी। आप किसी से भी एक बार प्यार से बोलकर तो देखें वह आपके सम्मान में अवश्य ही नत-मस्तक हो जाएगा। कुछ लोग ऐसा कहते हैं, आखिर वह क्यों किसी के आगे झुके और क्यों किसी व्यक्ति विशेष से प्यार से बोले जबकि वह तो उनसे ऐसे नहीं करता। संस्कृत के श्लोक के अनुसारµफलदार फल सदैव झुके रहते हैं जबकि फलरहित पेड़ कठोरता के साथ तने रहते हैं। अर्थात गुणवान लोग वस्तु की सदैव झुकती है। गुणहीन कभी नहीं। आप फलदार पेड़ां की तरह झुके रहने का प्रयास करें। झुकने से आप नीचे नहीं हो जाते, जबकि इससे आपका सम्मान और बढ़ जाता है। विनम्रता, दीनता नहीं होती। 
अब्राहम लिंकन की ‘सफलता’ का राज उनकी व्यवहार कुशलता थी। वह अपने शत्रु को भी अपना मित्र बनाने का हुनर रखते थे। वे अपने शत्रुओं को समाप्त करने का एक ही फर्मूला अपने जीवन में अपनाते थे, अपने शत्रुओं को अपना मित्र बना लो। इससे शत्रुता खत्म हो जाएगी। कहते हैं कि वह किसी पर क्रोध नहीं करते थे। यदि किसी पर क्रोध भी आया तो वह एक क्रोध से भरा हुआ पत्र उस व्यक्ति को लिखते थे, जिसमें सारी गुस्से वाली बातें लिखी होती थीं और जब लिंकन का गुस्सा शांत हो जाता, तो उस पत्र को फाड़कर फेंक देते थे। इस प्रकार के व्यक्तित्व गुणों ने लिंकन को एक गरीबी किसान के बेटे से अमेरिका का राष्ट्रपति बना दिया।
आप यदि किसी समूह का नेतृत्व करते हैं, तो आप अपने समूह के प्रत्येक सदस्यों के साथ मधुभाषी बनें। किसी सदस्य के साथ कर्कशता पूर्ण व्यवहार या उसे अन्य सदस्यों के समक्ष नीचा दिखाने का प्रयास न करें ऐसा करने से आप समूह की एकता को भंग कर सकते हैं। इस स्थिति में समूह के अन्य सदस्य आपसे कटने लगेंगे। समूह के सदस्यों का रचनात्मक एवं सार्थक समर्थन न मिलने के कारण आपका समूह लक्ष्य से भटक सकता हैं।
कभी लोगों को वर्गीकृत मत करो। वह छोटा है, वह बड़ा है, मैं मैनेजर वह चापरासी इस प्रकार का वर्गीकरण व्यवहार कुशल व्यक्तियों के लिए ठीक नहीं, सभी को सम्मान दें। सभी को इज्जत दें देखिये कैसे उन लोगों का सहयोग आपको बुलंदियों पर पहुँचा सकता है। व्यक्तियों का वर्गीकरण करने से आप अपने मस्तिष्क में बे-वजह का दंभ या कहें की थोथा अभिमान बैठा लेते है। यह अनावश्यक दंभ और अभिमान आपकी सोच को एक दायरे में सीमित कर देता है। सीमित दायरे में सोचने वाला व्यक्ति उस दायरे से निकल नहीं पाता। वह कुएं का मेढक बन जाता है। कुएं का मेढक कभी उन्नति नहीं कर सकता।
प्रत्येक व्यक्ति महत्वपूर्ण होना चाहता है अतः व्यावहारिक बनने के उद्देश्य से आप अपने समक्ष उपस्थिति या अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को महत्व दीजिए भले ही आप वह आप से छोटा हो। उसे अहसास कराएं कि वह आपके लिए महत्वपूर्ण है। उसकी किसी बात से सहमत न हो फिर भी आप इसे अहसास दिलायें, आप उससे पूरी तरह से सहमत है। उसकी बात को बीच में न काटें। उसे अपनी बात कहने का पूरा अवसर दें।
प्रत्येक व्यक्ति अपने नाम को विशेष महत्व देता है। आप व्यवहार कुशल बनने के लिए इस मानवीय मानसिकता को पहचाने। यदि व्यक्ति आप की आयु का है या आप से छोटा। आप उसे नाम लेकर पुकारें। व्यक्तियों क नाम याद रखने के रुचि पाले। यदि आप का कोई मित्र या परिचित आप से लंबे समय पश्चात मिलता है। उसे पता नहीं कि आप उसका नाम जानते है या नहीं। इस स्थिति में यदि आप उसे उसका नाम लेकर पुकारेंगे तो वह आपसे अवश्य ही प्रभावित होगा। वह आप से अधिक लगाव महसूस करेगा। उसके मस्तिष्क में अवश्य ही आएगा कि इतने दिन बाद भी आप उसका नाम नहीं भूले।
आप लोगों के जन्म-दिन को याद रखे, किसी व्यक्ति को उसके जन्म-दिन पर बधाई अवश्य दीजिये। यह उसके लिए आपकी ओर से जन्म-दिन का सबसे महत्वपूर्ण उपहार होगा। इस प्रकार वह व्यक्ति आप से लगाव महसूस करेगा। निकट भविष्य में आपको उस व्यक्ति से किसी न किसी प्रकार का सहयोग अवश्य ही मिलेगा। आप व्यवहारकुशल बनकर लोगों के बीच स्वयं को प्रसिद्धि दिला सकते है।
एक व्यापारी होने पर आप उपरोक्त टिप्स को अपना कर अपने ग्राहकों के बीच पैठ बना सकते है। इसी प्रकार से नौकरी पेशा होने पर अपनी सहकर्मियों के बीच पहचान पा सकते हैं। आपको सहकर्मियों का भरपूर सहयोग मिलने लगेगा। जो आपकी सफलता की नींव रखेगा।
व्यवहार कुशल बनने के लिए अपने स्वार्थ को छोड़ो। स्वार्थी व्यक्ति कुछ समय के लिए अपनी स्वार्थपूर्ति कर लेता है पर स्वार्थ पूर्ति की प्रक्रिया दीर्धकालीन नहीं हो सकती। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। स्वार्थी एवं चापलूस बनकर आप एक बार तो सामने वाले का विश्वास जीत सकते हैं लेकिन अगली बार वह व्यक्ति आपके व्यवहार से चौकन्ना रहेगा। इसके विपरीत निःस्वार्थ भाव से किसी के साथ कार्य करने पर वह व्यक्ति सदैव आपके कार्य में सहयोगी बनेगा। कुछ लोग स्वार्थ को ही सफलता की युक्ति समझने की भूल करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को इस प्रकार की भ्रांति को अपने मस्तिष्क से निकाल फेंकना ही बेहतर है।
बच्चों के प्रति प्यार एवं बड़ों के प्रति सदैव सम्मान व्यक्त करें। बच्चों का प्रेम आपकी प्रगति एवं उन्नति में सहायक बनेगा। बच्चो के खुशहाल एवं चहकते चेहरे आपमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। प्रेम के स्थान पर किसी बच्चे को बे-बजह डांटने या अनावश्यक रूप से क्रोध दिखाने से बच्चे का खुशहाल एवं चहकता चेहरा मुरझा सकता है। बच्चे के मुरझाए चेहरे और रोनी सूरत आपमें नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। नकारात्मक ऊर्जा के बढ़ने से आपकी सोच और नजरिया भी नकारात्मक बनेगा जो आप को आपके लक्ष्य से भटका सकते हैं।
ऐसा भी होता है कि आप अपने से बड़ों की किसी भी सलाह या सुझावों से इत्तेफाक न रखते हो, बावजूद इसके आप उनकी सलाह को पूरा सम्मान दो। बड़ों का अशीष सफलता के मार्ग में ‘प्रकाशस्तंभ’ की भूमिका निभाता है। बड़ों का सम्मान करने से आप छोटे नहीं बनते बल्कि इससे आपका आत्म-सम्मान ही बढ़ेगा। बड़ो का सदैव हमारे प्रति प्रेम एवं स्नेह बना रहेगा।
यदा-कदा समाचार-पत्रों में संतान द्वारा माता-पिता के प्रति अभद्र व्यवहार के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। कुछ मामलों में तो संतान उच्च पद पर आसीन या फिर अच्छे व्यापारी या धन-धान्य संपन्न होती है, जो समाज में सफल व्यक्ति के रूप में मान्य होते हैं। ऐसी सफलता तथा धन-धान्य किस काम का जो अभिभावकों के प्रति हमारे कर्त्तव्य को ही भुला दे।
ऊँचाई पर पहुँचकर नीचे देखना मत भूलो। उन लोगों को मत भूलो जिनके सहयोग से आप यहाँ तक पहुँचे हो। इससे उन लोगों में सदैव आपके प्रति सम्मान की भावना रहेगी। हमारे पास गुलशन कुमार का उदाहरण है जिन्होंने कैसेट किंग बनने के पश्चात भी उस जूस की दुकान को बंद नहीं जिसके माध्यम से वह कैसेट किंग बने।
जिस समाज या समुदाय में आप रहते हैं, वहाँ व्यवहार कुशलता से आपकी विशिष्ट छवि बनती है। न्यूटन के गति के नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के परिणामस्वरूप एक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। आप जो कुछ भी क्रिया उसकी प्रतिक्रिया अवश्य ही मिलेगी। उदाहरणार्थ आप जिस गति से धरती पर गेंद फेंकते है, धरती भी उस गति या वेग से उस गेंद को आपकी तरफ उछाल देती है। ठीक इसी प्रकार का नियम आपके व्यवहार पर भी लागू होता है। किसी के साथ विनम्रता और मेल-जोलपूर्ण व्यवहार करने पर आपके समक्ष खड़ा हुआ व्यक्ति भी आपसे विनम्रता के साथ मेल-जोल बढ़ाएगा। इसी प्रकार किसी से रुक्ष या कर्कश व्यवहार करने पर आपके समक्ष खड़ा व्यक्ति भी रुक्ष और कर्कश व्यवहार अपना सकता है। जिससे परस्पर सामजंस्य के स्थान पर विवाद और वैमनस्य पैदा होगा जो अंत में एक प्रकार के तनाव को ही जन्म देगा। तनाव से मानसिक अस्त-व्यस्तता उत्पन्न होगी। मानसिक अस्त-व्यस्तता के चलते आप समुचित मानसिक एवं शारीरिक क्षमता का उपयोग नहीं कर सकते, जिससे आप अपने लक्ष्य से भटक सकते है। जैसा आपने अक्सर किसी अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल मैच या क्रिकेट मैच में देखा होगा, प्रतिद्वंद्वी टीम का कोई सदस्य खिलाड़ी अपने समक्ष उपस्थित टीम के किसी विशेष खिलाड़ी की एकाग्रता भंग करने के लिए उस पर आपत्तिजनक टिप्पणी करता है। जिससे अन्य खिलाड़ी विशेष उत्तेजित होकर अपना आत्मसंतुलन खो देता है। जिससे उसकी टीम को हानि उठानी पड़ती है। इस स्थिति में यदि संबंधित खिलाड़ी पूरी विनम्रता के साथ प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी की फब्ती का उत्तेजित हुए बिना हंस कर टाल दें, तो उसे तथा उसकी टीम को हानि नहीं उठानी पड़ेगी। प्रतिद्वंद्वी टीम की ऐसी खेल भावना से रहित अनुचित योजाएँ धरी की धरी रह जाएंगी।
सदैव अपने समक्ष खड़े व्यक्ति के नजरिये को समझने का प्रयास करें। अक्सर ऐसा होता है कि आप चीजों को अपने नजरिये से देखने का प्रयास करते हैं। आपके नजरिये वह चीज ठीक हो सकती है। पर शायद सामने वाले के नजरिये से ठीक न हो। इसलिए व्यवहार कुशल बनने की दृष्टि से आप सामने वाले के नजरिये को भी समझने का प्रयास करें। स्वयं को उसके स्थान पर रखकर सोचें कि वह ठीक है या नहीं। अक्सर बॉस अपने मातहत कार्य करने वाले कर्मचारियों को डांटते रहते हैं, फलां स्थिति में उसे ऐसा करना चाहिए। इस प्रकार की आदतों से वह अपने मातहत कार्य करने वाले में अपने प्रति कटुभावना भर कर स्वयं के प्रति उनके विश्वास को कम कर देते हैं। इस परिस्थितियों में उनके माहतत कार्य करने वाले का उन्हें पूर्ण सहयोग नहीं मिल पाता। जिससे संस्थान की कार्य क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत वह अपने मातहत कार्य करने वाले के नजरिये से समस्या को समझने का प्रयास करें। अब्राहम लिंकन की सफलता का भी यही रहस्य था कि वह दूसरे के नजरिये को समझने का प्रयास करते थे। जीवन में सफलता के लिए सामने वाले के नजरिये को समझना अति आवश्यक होता है। अक्सर लोग यही गलती करते है कि वह सभी चीजों को अपने नजरिये से देखते हैं।
बे-वजह की बहसो से बचने का प्रयास करें। अपने को आवश्यकता से अधिक सुपरियर ;ैनचमतपंतद्ध या सर्वश्रेष्ठ न समझे सामने वाले की बातों का भी महत्व दें। बे-बजह की बहसों का निष्कर्ष नहीं निकलता वे तो बस महज समय बर्बादी का माध्यम ही बनकर रह जाती है। अक्सर कई बार ऐसा होता है, आप ठीक होते हैं और सामने वाला गलत, मगर सामने वाला अपने को गलत मानने को तैयार नहीं होता। इस स्थिति में लंबी बहस चलती है, परिणाम कुछ भी नहीं निकलता है। इस स्थिति से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि आप सामने वाले को अहसास दिलाएं वह ठीक है। इससे सामना वाले का व्यवहार आपके प्रति नम्र बनेगा। वह आपका मित्र बनकर निकट भविष्य में आपके काम आ सकता है। बहस करने पर आप उससे शत्रुता ही मोल लेंगे। जो न तो आपके लिए हितकर होगी न ही उसके लिए। अक्सर लंबी बहस महौल में तनाव उत्पन्न कर देती है।
सामने वाले को बोलने का अवसर दें। अक्सर किसी से वार्तालाप करते समय आप अपनी अपनी हांकते हैं, जिससे सामने वाले को महत्व नहीं मिल पाता। जहाँ तक हो सके सामने वाले कि सुनने का प्रयास करें। इससे सामने वाले को अहसास होगा कि वह आपके लिए महत्वपूर्ण है। आप जितना सामने वालो को सुनेंगे उतना आपमें उसका विश्वास जागेगा। वह आपसे मित्रवत् होगा। जितना आप उसकी बात को काटेंगें, उतनी ही झुंझलाहट उसमें आपके लिए आएगी, उसमें आपके  प्रति विश्वास कम होगा। वह आपके विषय में गलत धारणा बना सकता है। हालांकि आप उसके लिए सहानुभूति रखतें हों फिर भी वह आपके प्रति गलत धारणा बना सकता है। विशेषकर अभिभावकों को अपने बच्चों को अधिक से अधिक सुनने का प्रयास करना चाहिए, जिससे उन्हें अहसास हो, वे अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे अभिभावकों एवं बच्चों में परस्पर सामंजस्य भी पैदा होगा। अभिभावकों को अपने बच्चों को समझने का अवसर भी मिलेगा, वह कैसा सोचते हैं? अक्सर बच्चे के अधिक बोलने पर अभिभावक उसे डांटकर बैठा दे हैं, जिससे बच्चे हीनभावना से ग्रसित हो जाते हैं। वे अपने अभिभावकों से कटने लगते है। सफल पेरेटिंग के लिए बच्चों बातों को सुनने उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास करें। व्यापार की सफलता के लिए भी आवश्यक है कि आप स्वयं से डील करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पूरी तन्मयता के साथ सुनें। इससे उस व्यक्ति का आपमें विश्वास जागेगा और आपको व्यापारिक लाभ भी प्राप्त होंगे जा आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
कभी किसी की आलोचना मत करो, सदैव सामने को वाले प्रोत्साहित करो। इस दुनिया में सबसे सरल कार्य यदि कोई है तो वह है सामने वाले की आलोचना। जिसने कभी क्रिकेट का बल्ला भी नहीं पकड़ा, वह अच्छे से अच्छे बल्लेबाज की एक सेकिंड में आलोचना कर देता है, उसने गलत ढंग से खेला। वह यह जानने का प्रयास नहीं करता, यदि वह उस अमुक खिलाड़ी के स्थान पर होता तो क्या वैसा भी नहीं कर पाता। आलोचना अपने आपमें सबसे तीखा हथियार है, यदि किसी को भी मानसिक चोट पहुँचानी हो तो उसकी आलोचना कर दो। आलोचना को किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता, आलोचना मनोबल को तोड़ने वाली होती है। कुछ लोगों का मानना होता है, सामने वाले की आलोचना करके बेहतर परिणाम लिया जा सकता है, यह सोच गलत है, कभी भी आलोचना से आप श्रेष्ठ परिणाम नहीं ले सकते है। अक्सर अभिभावक अपने बच्चे के विषय में यह कहते सुने जाते हैं, वह तो नालायक है, यह पढ़ाई मे फिसड्डी है। इस तरह की बातें बच्चे के अवचेतन मस्तिष्क में बैठ जाती हैं और बच्चा नालायक और फिसड्डी ही बन जाता है। इसके विपरीत प्रोत्साहन के दो बोल उसमें आत्मविश्वास का संचार कर देते हैं। वह अपनी कार्यक्षमता से बेहतर करने का प्रयास करके अच्छा परिणाम दे सकता है। लेकिन ऐसा करने वाले बहुत ही कम होते है। मान लो आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है, तो क्या आप उसे आलोचना से कभी ठीक कर सकते हैं? कदापि नहीं, आलोचना से तो आप उसे और कमजोर बना रहे है। आलोचना के स्थान पर प्रोत्साहन का सहारा ले। इसी प्रकार यदि कोई व्यापार चलाते हैं तो उसमे उन्नति के लिए आप उस व्यापार में संग्लन कर्मचारियो के कार्य की आलोचना न करे आप उन्हें प्रोत्साहित करें। प्रोत्साहन से उनका आत्म विश्वास बढे़गा जबकि आलोचना से उनमें हीन भावना की पनपेगी।

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