एक छोटे से गाँव से व्हाइट हाउस तक

अब्राहम लिंकन न केवल अमेरिकन अपितु समूचित दुनिया के लिए एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं। लिंकन कठिन परिश्रम तथा सकारात्मक सोच का उदाहरण हैं और संभवः यही उनकी ‘सफलता’ का भी राज रहा होगा। लिंकन एक ऐसा नायक है, जिसने सीमित संसाधनों में या यूं कहें कि न के न बराबर संसाधन होने पर भी पर कभी नसीब को नहीं कोसा। इन्हें कठिन परिस्थितियों के बीच जीवन जीने का हुनर आता था।


लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 को हार्डलिन कंटरी (Hardlin Country) के समीप केंचुकी (Kentuchy) नामक स्थान पर नेनी हेक्स तथा थाॅमस लिंकन नामक किसान दंपत्ति के यहाँ हुआ। इनके जन्म के 7 वर्ष बाद इनका परिवार इंडियना नामक स्थान पर बस गया। इनकी आयु मात्र 12 वर्ष की उसी समय उनकी माता का देहांत हो गया। यह इनके जीवन में भाग्य का सबसे भयंकर कुठाराघात था। पर लिंकन जैसे व्यक्ति कब घबराकार हिम्मत हारने वाले होते हैं। माँ के देहांत के कुछ समय पश्चात ही थामस लिंकन ने दूसरी शादी कर ली। अब लिंकन को अपनी सौतेली माँ कि देखरेख में पलना था। लिंकन को अपनी सौतेली माँ से भरपूर सहयोग मिला। इनकी सौतेली माँ ने इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा मात्र एक वर्ष तक ही हो सकी। उन्हें पढ़ने-लिखने में बहुत रुचि थी। मात्र एक वर्ष तक प्रारंभिक शिक्षा होने के बावजूद लिंकन ने पढ़ने की अपनी रुचि को कभी कुंद नहीं होने दिया। वे अक्सर पढ़ने लिखने में ही ध्यान लगाया करते थे। एक बार इन्हांेने अपने एक मित्र से अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन के जीवन से संबंधित पुस्तक पढ़ने के लिए मांगी। इन्हें पुस्तक शीघ्र ही लौटानी थी, इस कारण लिंकन देर रात तक इस पुस्तक को पढ़ते रहे। पढ़ते-पढ़ते उनकी आँख लग गई पुस्तक, खिड़की पर रखी रह गई। हिमपात के कारण पुस्तक क्षतिग्रस्त हो गई। इनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे उस पुस्तक का मूल्य उसे लौटा दें। इसके लिए इन्होंने अपने मित्र से एक समझौता किया। इस समझौते के अंतर्गत इन्होंने तीन-चार दिन तक उस मित्र के खेतों में काम किया। इसे लिंकन का स्वाभिमान ही कहेंगे कि इन्होंने अपने मित्र के पुस्तका का मूल्य न लेने का अहसान नहीं लिया। इस प्रसंग ये भी स्पष्ट हो जाता है कि लिंकन ने अपना बाल्यकाल किन-तंग आर्थिक स्थितियों में बीच गुजारा। एक समय ऐसा भी था जब उनके पास पुस्तक खरीदने तक के पैसे नहीं होते थे। बावजूद इसके लिंकन ने समझौता करना स्वीकार नहीं किया।
इन्होंने आर्थिक स्थिति को अपनी मंजिल की रुकावट नहीं बनने दिया। उनका दृढविश्वास था वे अवश्य ही अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। मात्र एक वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा और उस पर बदहाल आर्थिक स्थिति के बीच यदि कोई अमेरिका का राष्ट्रपति बनने का स्वप्न देखें तो उसे कपोल कल्पना ही कहा जाएगा। लिंकन का ‘लक्ष्य’ पाने की दृढइच्छा और ‘लक्ष्य’ के प्रति समर्पण भाव के कारण वह सभी बाधाओं से निकल गये। एक राजनीतिज्ञ के रूप में अब्राहम लिंकन ने अपने राजनैतिक कैरियर प्रारंभ 1832 में किया इन्होंने स्टेज लेजिस्लेटर का चुनाव लड़ा और एक बार फिर विपरीत परिस्थितियों ने प्रचंड रूप दिखाया और लिंकन चुनाव हार गये। इतने पर भी लिंकन ने हार नहीं मानी। विजय के प्रति उनकी उत्कंठा तीव्र थी। वह अपने को असफल कहलवाना नहीं चाहते थे। उन्हें स्वयं पर पूर्ण विश्वास था। वह जानते थे कि आखिर कब तक विपरीत परिस्थितिया अपना रंग दिखाएंगी, अंत में जीत उनकी की ही होनी है। इसी जज्बे के साथ लिंकन डटे रहे। इन्होंने इल्लीनोइस ;प्ससपदवपेद्ध सीट से चुनाव लड़ा इस बार विपरीत परिस्थितियों ने लिंकन के ‘दृढ़निश्चय’ के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया। विपरीत परिस्थितियाँ हार गई लिंकन विजयी हुए।
उन्होंने कानून का अध्ययन किया और 1836 में बार (Bar)  में प्रवेश लिया। एक वकील तथा राजनीतिज्ञ दोनों ही रूपों में लिंकन ने स्वयं को प्रतिष्ठित किया।
लिंकन की सफलता का राज उनकी शालीनता, सादा जीवन, ईमानदारी धैर्य तथा शत्रुओं से भी मित्रवत व्यवहार आदि इनके चारित्रिक गुणों में भी छिपा था। लिंकन के विषय में यह बात प्रचलित है कि वह अपने शत्रुओं को भी अपना मित्र बनाने का हुनर जानते थे। लिंकन कभी भी अपने शत्रुओं से शत्रुभाव नहीं रखते थे। वह शत्रुओं को भी गले लगाने का व्यवहार रखते थे। लिंकन की इस प्रकार के उदारता के कारण शत्रुओं का भी भरपूर सहयोग मिलता था। यही लिंकन की सफलता का राज था। लिंकन क्रोध भी बहुत कम करते थे। यदि उन्हें किसी पर क्रोध आता तो वह अपने क्रोध भरे शब्दों को एक पेपर पर लिख कर रख लेते थे। क्रोध शांत होने पर उस पेपर को फाड़ कर फेंक देते थे। इन्हीं सब चारित्रिक गुणों ने ही एक गरीब किसान के बेटे को अमेरिका का राष्ट्रपति बना दिया। आज इतने वर्षों के पश्चात् भी लिंकन समूचि दुनिया के लिए आदर्श बने हुए हैं।
रिपब्लिक (Republic) पार्टी ने लिंकन को अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में मनोनित किया। लिंकन को 40 प्रतिशत पापुलर वोट प्राप्त हुए। 303 इलेक्टर्स में से 189 ने उनके पक्ष में मतदान किया और लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिए गए। एक सपना जो लिंकन देखा करते थे वह अंततोगत्वा पूरा हो ही गया। वह ऐसा समय था जब लिंकन के आलोचकों की बगले झांकने के पर मजबूर होना पड़ा। लिंकन स्वयं में सफलता के पर्याय हैं। ‘लिंकन’ एक ऐसा व्यक्तित्व है जो किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माना सकता। वह तो अपने ‘लक्ष्य’ के प्रति पूर्णतः समर्पित है। उसकी अपने लक्ष्य को पाने की दृढ़इच्छा ने ही इन्हें मात्र एक वर्ष तक ही स्कूलिंग के बावजूद न केवल वकील बना दिया अपितु वह अमेरिका के राष्ट्रपति भी बन गए। लिंकन की उपलब्धि न केवल वकील और राष्ट्रपति के रूप है अपितु वह एक महान विद्वान के रूप में भी जाने जाते हैं। जीवन में अपने ‘लक्ष्य’ को पाने के लिए लिंकन से श्रेष्ठ आदर्श मिलना शायद ही संभव हो। लिंकन ने गरीब किसान का बेटा या फिर कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति कभी राष्ट्रपति नहीं बन सकता। इस प्रकार की मनगढंत भ्रांतियों को तोड़कर प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। साधनहीनता तथा कमजोरियों को लिंकन ने कभी स्वयं पर हावी नहीं होने दिया, जो लिंकन की छिपी हुई प्रतिभा थीं । लिंकन किनारे पर बैठकर नदी के गहरे या अथाह होने की दुहाई नहीं दी। उन्होंने तो प्रत्येक परिस्थिति में नदी पार करके के प्रयास को महत्व दिया।
लिंकन के चारित्रिक गुण सदैव सफलता प्राप्त करने की दिशा में आपके लिए द्किसूचक बन सकते हैं। सफलता पाने के लिए लिंकन के व्यक्तित्व से हमें सीख लेनी ही होगी। अपनी नाकामियों की दुहाई मत दो अपनी सफलता के लिए निरंतर प्रयासरत रहो। धैर्य को कभी मत छोड़ो, मुश्किलांे से हार न मानो और सफलता की दृढ़इच्छा को भी भी मरने न दो। इनके अतिरिक्त व्यवहारकुशल बनांे, समक्ष खड़े व्यक्ति के नजरिये को समझने का प्रयास करो, दुश्मन को दोस्त बनाने की कला सीखो ‘सफलता’ आवश्यक ही आपके कदमों को चूमेगी। यही लिंकन की सफलता का मूलमंत्र था।

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