सफलता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधादृ‘भय’

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, उसका ‘भय’। मनुष्य इस पृथ्वी पर उपस्थित समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ है। बावजूद इसके भयरूपी दैत्य उसे विवश निष्किय बना देता है। मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि भय और कुछ नहीं उसके मन की ही उपज है। भय को जन्म वह स्वयं देता है और अंत में स्वयं ही उसका दास बन जाता है। भय की दासता उसे बुरी तरह से जकड़ लेती है। उसे नकारात्मक सोचने के लिए मजबूर कर देती है। उसकी नकरात्मक सोच उसके सकारात्मक सोच को नष्ट कर देती है। उसकी कार्यक्षमता को क्षीण कर देती है। उसके आगे बढ़ने के मार्ग को अवरुद्ध कर देती है। मस्तिष्क मे विश्वास का प्रहरी ही भय रूपी शत्रु से हमारी रक्षा कर सकता है।


प्रौराणिक कथाओं में वर्णित देवासुर संग्राम को दार्शनिक रूप से समझने का प्रयास करें, तो पाएंगे कि जहाँ ‘भय’ दानवों का प्रतीक है, वहीं विश्वास देवताओं का। यह संग्राम कहीं और नहीं होता बल्कि निरंतर हमारे मन में होता रहता है। यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप इस संग्राम मे किस प्रकार से विजय प्राप्त करते है। आप देवता अर्थात ‘विश्वास’ का पक्ष लेंगे या दानव अर्थात ‘भय’ के साथ जाना चाहेंगे।
सफलता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा भय है। भय रूपी शत्रु निरंतर आपके मस्तिष्क पर आक्रमण कर आपकी सोच को सीमित कर देता है। आपके उत्साह को तार-तार कर देता है। आपकी कार्य क्षमता को क्षीण कर देता है। सफलता के लिए आपको भय से मुकाबला करना ही होगा। भय रूपी शत्रु को जीतना ही होगा। जीवन रूपी सागर-मंथन में जहाँ भय दानव है, तो वहीं विश्वास देव है। यदि आप जीवन के सागर मंथन मे सफलता का अमृत पाना चाहते हो, तो आपको विश्वास रूपी देवताओं को प्रोत्साहित करना पड़ेगा।
विश्वास से आप भय का दमन कर सकते हैं। आप क्यों भय करते हो, आखिर भय से मिलने वाला किया है। भय से जब इच्छित परिणाम नहीं प्राप्त किए जा सकते हैं, तो आप क्यों भयभीत होकर बैठे हो। आप क्यों नहीं विश्वास की लौ को प्रज्वलित करते। भय एक प्रकार का अंधेरा कुआं है, जिसमें रहकर आप कभी उन्नति नहीं कर सकते है। उन्नति करने के लिए आपकी भय रूपी अंधेरे कुएं से निकलकर विश्वास रूपी विशाल धारा में प्रवाहित होना ही होगा। यह विश्वास की धारा ही आपकी सफलता के अथाह समुद्र की ओर ले जाएगी।
भय के कारण ‘वर्तमान’ को छोड़कर भविष्य की चिंता से चिंतित रहते हैं। ‘भविष्य’ किसी ने नहीं देखा। कल क्या होगा किसी को नहीं पता। ये अनिश्चितता ही व्यक्ति को भय में उलझाए रखती है। ‘भविष्य’ का ज्ञाता कोई नहीं फिर कल की चिंता क्यों। क्यों बिना कारण ‘भय’ मस्तिष्क में पाले बैठे हो। ‘आज’ की सोचो अर्थात वर्तमान में जीना सीखो भय को मस्तिष्क से निकालों। आपका ‘आज’ अर्थात वर्तमान ही ‘कल’ अर्थात भविष्य का निर्माण करेगा।
भय या डर कुछ नहीं बस एक सोच है। एक मानसिक स्थिति है, परिणाम के विपरित रहने की शंका है। इसके अतिरिक्त भय और कुछ नहीं। भय सोचने के ढंग को बदल देता है। मस्तिष्क अपनी समुचित कार्यक्षमता से कार्य नहीं कर पाता। प्रत्येक समय कुछ न कुछ अनहोनी का भय सताने लगता है। इस प्रकार की स्थिति मस्तिष्क को अवरुद्ध कर देती है। आप कुछ भी कदम उठाने से डरते है। आपके मस्तिष्क में अजीबो-करीब बातें आने लगती है। इस स्थिति में निर्णय लेना कठिन होता है। निर्णय न लेने के कारण, योजनाएँ धरी की धरी रह जाती हैं। सफलता के लिए निर्णय लेना अतिआवश्यक होता है। भय सदैव निराधार होता है, जो प्रगति को रोकता है।
‘भय’ से ‘संदेह’ उत्पन्न होगा। संदेह की स्थिति में व्यक्ति निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता। समय पर निर्णय न लेने के कारण ‘कार्य’ पूरा नहीं हो पाएगा। कार्य पूरा न होने के कारण उस ‘कार्य’ में सफलता नहीं मिल पाएगी। सफलता के लिए भय को मस्तिष्क से निकालना ही होगा। भय के कारण ‘यदि ऐसा किया तो कहीं वैसा न हो जाए’ इस प्रकार के नकारात्मक प्रश्न मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इस स्थिति में मस्तिष्क में भ्रम उत्पन्न होगा, भ्रम के कारण मस्तिष्क अपनी समुचित कार्य क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता।
 भय आपके आत्म-विश्वास को डिगा सकता है, आपकी कल्पना शक्ति को कम कर सकता है, आपकी निर्णय लेने की क्षमता को क्षीण कर सकता है। आपके उत्साह को धूमिल कर सकता है। आपके सोचने की क्षमता को कम कर सकता है। भिन्न प्रकार के भ्रमों एवं भ्रांतियों को आपके मस्तिष्क में उत्पन्न कर सकता है। इच्छाशक्ति को समाप्त कर सकता है। इच्छाशक्ति के समाप्त होने पर आप किसी भी स्थिति में सफल नहीं बन सकते ‘सफलता’ के लिए सर्वप्रथम ‘आपको’ निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचने की ‘इच्छाशक्ति’ जागृत करनी होगी। मगर ‘भय’ के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो पाएगा। सफलता के लिए ‘भय’ से मुक्ति पानी ही होगी।
‘भय’ का सबसे अहम कारण होता है ‘आलोचना’। आपमें से बहुत से दूसरों को दिखानें के लिए जीते हैं। उन्हें सफलता दूसरों को दिखाने के लिए चाहिए। ‘वे’ स्वयं के लिए सफल नहीं बनना चाहते, बल्कि दूसरों के लिए सफल बनना चाहते हैं। दूसरे को दिखाने के कारण उन्हे सदैव ‘आलोचना’ का भय रहता है। उन्हें भय रहता है, कहीं वह फलां कार्य में सफल नहीं हुए तो लोग क्या कहेंगे? लोग आलोचना करेंगे। इसी ‘आलोचना’ के कारण वे कार्य प्रारंभ नहीं कर पाते, किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाते। ‘आलोचना’ के ‘भय’ से उनकी निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है। आपको सफल बनाना है, तो आलोचना के डर को निकलना होगा। 
कोई व्यक्ति व्यापार करना चाहता है, इस स्थिति में उसके मस्तिष्क में सर्वप्रथम प्रश्न यही उठेगा कि यदि वह असफल हुआ तो उसका परिवार उसको क्या कहेगा? उसके मित्र उसको क्या कहेंगे? कहीं उसका समुचित परिश्रम व्यर्थ न चला जाए? इस प्रकार के प्रश्न उसे आलोचना के भय से ग्रस्त कर देंगे। उसकी नकारात्मक सोच उसकी सबसे बड़ी शत्रु बन जाएगी। इसके विपरीत आप सोचें में ‘सफल’ हुआ तो मेरा व्यापार फलेगा, मेरे पास पैसा होगा, प्रतिष्ठा होगी।
इसी प्रकार कुछ ‘नौकरी पेशा’ अपनी नौकरी को लेकर डरे रहते हैं। कहीं उनकी नौकरी न चली जाए। कहीं किसी गलत कदम से उन्हें अपनी नौकरी से हाथ न धोना पड़े। इस कारण वह चापलूसी का सहारा लेने लगते हैं। चापलूसी के कारण उनकी कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है जिससे वे श्रेष्ठ पदर्शन नहीं कर पाते। श्रेष्ठतम प्रदर्शन न करने के कारण उन्हें नौकरी में ‘सफलता’ नहीं मिल पाती। वे जहां के तहां रह जाते है। ‘भय’ के कारण ही चापलूसी की उत्पत्ति होती है। 
 लोग कुछ भी सोचें कुछ भी समझें, आपको तो अपना जीवन जीना है। आपको निर्णय ‘स्वयं’ के लिए लेने हैं, लोगों के लिए नहीं। यदि आप ‘सफल’ हुए तो क्या लोग आपकी आलोचना करनी छोड़ देंगे। यदि ऐसा है तो फिर आलोचना से क्या ‘घबराना’ आलोचना को अपनी कमजोरी मत बनने दो। आलोचना स्वीकार करते हुए, अपने ‘लक्ष्य’ की ओर बढ़े चलो, अपने निर्णय पर अटल रहो। 
इसी प्रकार जिन्हें व्यापार में निर्धारित स्थिति के ‘खोने’ का भय सताता रहता है, वे व्यापार को बढ़ाने के लिए साहसिक फैसले नहीं ले पाते। जिससे उनका व्यापार जहाँ का तहाँ रह जाता है।
‘भय’ के चलते कई व्यक्तियों में आवश्यकता से अधिक सावधानी बरतने की आदत पड़ जाती हैं वे हर काम को करने में कई-कई बार उसकी जाँच-पड़ताल करते हैं, जिससे समय का अपव्यय होता है। ‘समय’ का अपव्यय होने के कारण ‘काम’ में विलम्ब होता है। ‘उत्पादकता’ ;च्तवकनबजपअपजलद्ध प्रभावित होती है। व्यक्ति विशेष की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। ‘कार्य क्षमता’ कम होने से व्यक्ति के सफल होने की संभावना कम हो जाती है। ‘सावधानी’ बरतनी आवश्यक है, पर इसका यह भी अर्थ नहीं कि अपने ‘घर पर ताला लगा दिया’ फिर भी कर बार-बार देखना ही ताला ठिक से लगा है या नहीं। इससे आत्म-विश्वास में भी कमी आती है। आपको स्वयं पर विश्वास ही नहीं आप ने कार्य को ठीक ढंग से किया है या नहीं। जब आपको स्वयं पर विश्वास नहीं तो अन्य को आप पर क्या विश्वास होगा। 
‘भय’ ही किसी व्यक्ति विशेष को दीर्घसूत्री बनता है। अपने कार्य में इच्छित परिणाम न प्राप्त होने का ‘भय’ उसे भयभीत करता रहता है। इस प्रकार का ‘भय’ ही उसे निर्णय लेने से रोकता है, वह अमुक कार्य करे या न करें। ‘भय’ के कारण व्यक्ति उसे कार्य को टालता रहता है। कार्य टालने के कारण उस नियत कार्य से प्राप्त होने वाले लाभ प्राप्त नहीं होता। जिससे वह सफलता से दूर होता चला जाता है। ‘भय’ ही उसे कार्य के प्रति नकारात्मक सोचने के लिए विवश करता है। यह विवशता ही उसकी असफलता का कारण बनती है। ‘सफलता’ के लिए इच्छित परिणाम न प्राप्त होने के ‘भय’ को दूर करते हुए ‘लक्ष्य’ की दिशा में पूर्ण उत्साह के साथ अग्रसर हों ताकि इच्छित परिणाम प्राप्त किये जा सके।
‘भय’ मनुष्य में घबराहट असुरक्षा की भावना तथा बैचेनी जैसे नकारात्मक भावों, को उत्पन्न करता है। जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व कमजोर होता है। इसके विपरीत ‘भय’ से मुक्ति होने पर पूर्व वर्णित नकारात्मक भावों से मुक्ति मिल सकती है। नकारात्मक भावों से मुक्ति पाने पर उसके व्यक्तित्व में ‘ओज’ और ‘उत्साह’ आता है। ‘औज’ और ‘उत्साह’ ही उसमें सफलता के बीजों को अंकुरित करता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा थादृवीर बनो, हमेशा कहो, मैं निर्भय हूँदृसबसे कहो, डरो मत, भय मृत्यु है, भय पाप है, भय नर्क है, भय अधार्मिकता है तथा भय का जीवन में कोई स्थान नहीं है।“ 
(Be a hero, always say, I have no fear. Tell this to every days. Have no fear. To him fear is death, fear is sin, fear is hell, fear is unrighteousness, fear is wrong life.)
‘सफलता’ प्राप्त करने के लिए अपने ‘भय’ पर विजय प्राप्त करनी पड़ेगी। ‘भय’ को त्यागना होगा, बिना कारण के भय को विशेष रूप से। ‘भय’ को छोड़ कर साहसी बनने का प्रयास करो। आत्म-चिंतन करो, स्वयं से वार्तालाप करो। स्वयं का निरीक्षण करो स्वयं को समझाने का प्रयास करो की ‘भय’ से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या का समाधान करने के लिए समस्या का सामना करना ही पड़ेगा। ‘भय’ से घबराने से काम नहीं चलने वाला। साहस के साथ ‘लक्ष्य’ के मार्ग में आने वाली समस्याओं से जूझो। डरो मत, आगे बढ़ो, साहस करो देखना हर, मुश्किल आसान हो जायेगी। साहस से उत्साह जैसे शब्दों को अंगीकृत करो। सफलता के द्वार आपके लिए खुल जाएंगे। सोचो अब तक बिना कारण ‘भय’ के साथ जीने से आपको क्या मिला। जब अब तक नहीं मिला तो आगे भी क्या मिलेगा। फिर आज से ही अपने में ‘परिवर्तन’ लाने का प्रयास क्यों नहीं करते। क्यों नहीं ‘भय’ को दूर करने का प्रयत्न करते। अपने अवचेतन मस्तिष्क को संदेश दो मुझे ‘भय’ से हर हालत में दूर करना है। देखना सफलता बाहे फैला कर आपका स्वागत करने के लिए तैयार रहेगी।

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